Friday 30 December 2011

आर्थिक न्याय आन्दोलन

मानव सभ्यता के प्रारंभ  से ही बल,बुद्धि,धन,रूप आदि के नाम पर इन सब चीजों में कमजोर व्यक्ति का किसी न किसी रूप में शोषण होता रहा है. कालांतर में इन्हीं कारणों से कई तरह की असमानताओं का प्रादुर्भाव हुआ.असमानतासे असंतोष बढ़ता है फिर तंत्र कमज़ोर होता जाता है .
             कोई भी तंत्र सुन्दर व्यवस्था पर टिकाऊ होता है .विश्व की सारी सभ्यताओं का गंभीरता पूर्वक अध्ययन करने पर अमूमन यह प्रतीत होता है की मानवीय चेतना का विकाश शनै: शनै: हुआ है .देश और काल के अनुसार प्रभावी लोगों ने अपनी सुविधा के लिए शोषण का अलग अलग तरीका इस्तेमाल किया है.प्रत्येक लम्बे शोषण के खिलाफ क्रांति हुई है. इसका सूत्रपात कभी शोषित वर्गों के सामूहिक प्रयास से तो कभी शोषक या शोषित वर्ग के किसी विकसित मानवीय चेतना के व्यक्ति के 
 प्रयास से हुआ  है .
               दुनिया की हर क्रांति समय के साथ एक नयी क्रांति का आधार बना देती है .सामाजिक ,सांस्कृतिक ,आध्यात्मिक,वैज्ञानिक,राजनैतिक क्रांति के बाद विश्व में अब आर्थिक क्रांति का दौर है .और इस क्रांति में सभी स्थापित नियम कानून की धज्जियाँ उड़ाईं जा रही है .इसी  वजह से कई तरह से  भ्रष्टाचार और शोषण बढ़ रहा है .इस आर्थिक क्रांति की वजह से तथा पहले से  चली आ रही विषमताओं से काफी सामाजिक -आर्थिक असंतुलन पैदा हो गया है जो  घोर अन्याय है.इससे भयंकर असंतोष बढ़ रहा है .यदि समय रहते हम नहीं संभले तो यह पूरा तंत्र ही चौपट हो जायेगा .
                 बुद्धिजीवियों को श्रमजीवियों के अगले कदम कि आहट का अहसास बहुत जल्द हो जाता है और वे अपनी रणनीति तुरंत बदल देते है .अभी श्रमजीवी समाज सामाजिक न्याय आंदोलन कि हलकी फुलकी सफलता पर विराम ही कर रहे थे कि बुद्धिजीवी समाज ने सार्वजनिक क्षेत्रों से सभी चीजों को निजी क्षेत्र में हथिया लिया है .इस वजह से अब पहले से भी ज्यादा शोषण बढ रहा है .कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास आर्थिक आमदनी के सभी स्रोतों पर कब्ज़ा हो गया है और अधिकांश लोग बेवश और लाचार होकर उनकी चक्की में पिसे जा रहे हैं .इन  बढ़ते असंतुलनों  के खिलाफ आर्थिक न्याय आंदोलन  की परम आवश्यकता  हो गयी है.इसकी  शुरुआत करने हेतु हमलोगों को कुछ निम्न बिंदुओं पर गंभीरता पूर्वक विचार काना होगा।
                     अमीरी रेखा का निर्धारण

           आर्थिक न्याय आंदोलन की दिशा में सर्वप्रथम अमीरी रेखा का निर्धारण करवाना अनिवार्य है .अमीरी रेखा का निर्धारण बहुत ही आसान है .देश की कुल गैर सरकारी सम्पति(चल,अचल व नगद ) का मूल्य निर्धारण कर कुल आबादी से विभाजित कर देना है .प्राप्त औसत राशि ही अमीरी रेखा है.जिनके पास इस राशि के बराबर या ज्यादा राशि की सम्पति है वे अमीर तथा जिनके पास इससे कम राशि की सम्पति है वे गरीब है.
                       औसत संपत्ति से उपर कर  
  प्राकृतिक न्याय की  दृष्टिकोण से देश की संपूर्ण प्रकृति प्रदत्त संपत्ति जैसे  जल, जंगल,जमीन,खनिज  आदि पर सभी लोगों का एक समान अधिकार होना चाहिए.परन्तु प्राचीन काल से अब तक कुछ व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरूपयोग करके प्रत्येक तरह की संपत्ति में अपने हिस्से से ज्यादा पर अवैध तरीकों से कब्जा जमाये हुए है. वैसे तमाम लोग जिनके पास  निर्धारित औसत संपत्ति या उससे ज्यादा है पर 10 %अमीरी /संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए. वर्तमान व्यवस्था में कई तरह की कर प्रणाली है जो काफी दोषपूर्ण है. इस प्रणाली से सरकारी उगाही कम भ्रस्टाचार को प्रोत्साहन ज्यादा मिलता है. एक ठोस सर्वे के मुताबिक निर्धारित अमीरी रेखा से उपर के लोगों से अमीरी/संपत्ति कर से प्राप्त राशि  अभी वसूली जानेवाली विभिन्न प्रकार के करों से प्राप्त राशि से लगभग दस गुणा ज्यादा होगी. इसलिए सभी तरह के करों को समाप्त कर अमीर लोगों पर उनकी कुल सम्पति पर १० प्रतिशत का वार्षिक कर लगाया जाए .
               इस राशि में से देश और राज्यों के कुल आवश्यक सरकारी खर्चो को काटकर शेष बची हुई राशि का सदुपयोग निम्न तरीकों से किया जाये तो देश का बहुत जल्द काया कल्प हो जायेगा .
               सभी बेघरों को पक्का मकान
इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि  आज़ादी के 66 साल बाद भी बहुत सारे लोगों को सर छुपाने के लिए अपना कोई घर नसीब नहीं
हो सका है.इस देश में कुछ ऐसे भी लोग है जिनके घर और साज-सज्जा की कीमत अरबो रूपए की है और इसी देश में वैसे भी बहुत लोग है जो परिवार के साथ फूटपाथ पर ही पूरी जिंदगी गुजार देते हैं. सरकार का यह प्राथमिक दायित्व होना चाहिए कि देश के सभी बेघरों को हर हाल में अविलम्ब पक्का मकान मुहैया कराये.
        गुणवत्तापूर्ण निःशुल्क आवासीय शिक्षा 
  देश समुचित शिक्षा से प्राप्त ज्ञान के आधार पर उपलब्ध रोजगारों से भी आर्थिक गैर बराबरी मिटाने में काफी मदद मिलेगी। धन के अभाव में गरीबों के बच्चों को अच्छी शिक्षा से हमेशा वंचित रहना पड़ता है। लुंज पुंज स्कूलों में यदि इस वर्ग के बच्चे पढ़ते भी है तो घर पर उचित माहौल नहीं मिलने  से उनमें सही विकास नहीं हो पाता है। यदि भूमिहीनों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण निःशुल्क आवासीय शिक्षा मुहैया करायी जाये तो वे स्वावलम्बी बनकर आर्थिक असमानता को दूर करने में निश्चित रूप से सफल होंगे।   
                   मतदान करने वालों को भत्ता 
लोकतंत्र में मतदान का बहुत महत्व है.वर्तमान परिवेश में लगभग आधा मतदाता चुनावी प्रक्रिया में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं. फलतः चुनाव में उचित व्यक्ति को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है. मतदान में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी बढाने हेतु मतदाता भत्ता लागू  किया जाना चाहिए. ऐसा करने से मतदान की प्रतिशतता काफी बढेगी  और उचित लोगों का चयन हो सकेगा जिससे लोकतंत्र में मजबूती आयेगी.
              इस तरह की व्यवस्था से शीघ्र ही आर्थिक असंतुलन समाप्त होगा और समाज का समग्र संतोष जनक  विकास होगा जिससे अंततः हमलोग शांतिपूर्ण वयवस्था का निर्माण कर सकेंगे .
नोट :-इस विचार पर अपनी राय और संशोधनअवश्य भेजें .....
                                      -राघवेन्द्र सिंह कुशवाहा (मो-9955773232 )
 

Friday 21 October 2011

मेरी कविता:-हाँ तुम मुर्दा हो गए हो .....

हाँ तुम मुर्दा हो गए हो .....
 
 क्या तुम बहरे हो
जो नही सुनाई पड़ती चीखें
उन बेबस और लाचारों की
जिन पर जोर जुल्म ढाया जा रहा है ।
क्या तुम अंधे हो
जो नही दिखाई पड़ता है अत्याचार
लूट ,हत्या ,अपहरण और बलात्कार
जो अक्सर तुम्हारे सामने हो रहा है
क्या तुम लुल्हे हो
जो नही करते हो प्रहार
उन कारणों के खिलाफ
जो तुम्हारा सुख चैन लूट रहा है
क्या तुम गूंगे हो
जो नही करते हो प्रतिकार
उन जालिमों के खिलाफ
जो तुम्हारा सपना मिटा रहा है
तुम अंधे, बहरे, लुल्हे और गूंगे ही नहीं
हाँ तुम मुर्दा हो गए हो
जो चुप चाप सह रहे हो
ये सारा भ्रष्टाचार  ......


  

मेरी कविता :- विडम्बना

 विडम्बना 

लोग मानते हैं कि
भगवान की मर्जी बगैर
एक पत्ता भी नहीं हिलता
पर मैं नहीं मानता
रोज़ बहुत कुछ
ऐसा होता है
जिसे भगवान तो क्या
भला आदमी भी पसंद नहीं करता ।


चोर उचक्के अमीर बन रहे हैं
अच्छे भले फटेहाल हो रहे हैं
काली करतूत वाले सफेदपोश बनकर
सत्ता से मौज उड़ा रहे हैं ।
बच्चे अनाथ हो रहे हैं
औरतों की मांगे सुनी हो रही हैं
बलात्कार, अपहरण , हत्या, तो सरेआम है
कुव्यवस्था की हद हो गई है ।
फिर भी लोग कह रहे हैं
भगवान की इच्छा के बिना
कोई कुछ भी नहीं कर सकता 


है कोई जो कह सके मेरे अलावा ?
या तो इस कथन में दम नहीं
या फिर कोई भगवान नहीं......

        -राघवेन्द्र सिंह कुशवाहा


Monday 8 August 2011

चोर की मां कौन ?---रोशन लाल अग्रवाल


चोर की मां कौन ?-

चोर की मां कौन ?

रोशन लाल अग्रवाल
 
 यह देश घोटालों का शिकार है आए दिन एक से एक विकराल घोटालासामने आता रहता है अब हम लोग भी इनके अभ्यस्त हो गए हैं औरसबने इसे वर्तमान व्यवस्था का सामान्य हिस्सा मान लिया है। 

इसके कारण जब भी कोई घोटाला सामने आता है तो बहुत बड़ा होनेपर भी पांच सात 10 दिन के लिए तो चर्चा में रहता है लेकिन बाद मेंवह अभी सबके ध्यान से उतर जाता है ऐसा लगता है कि हम नेघोटालों को सहज रुप से अपनी व्यवस्था का हिस्सा मान लिया है औरइन को लेकर हमारी संवेदना भी समाप्त हो गई है। 

क्या आप इस स्थिति को खतरनाक मानते हैं या फिर इसे एक सामान्य प्रक्रिया मानते हुए इसकी उपेक्षा कर दीजानी चाहिए यदि हम इसे गंभीरता मांगते हैं तो हमें वर्तमान संवेदनहीनता का कारण समझना चाहिए औरइसके समाधान का उपाय भी पूरी गंभीरता के साथ करना चाहिए। 
मेरी समझ में तो यह एक अत्यंत गंभीर मामला है और इससे संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह नष्ट होसकती है इसलिए इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। 
मेरी समझ में इस समस्या का मूल कारण अपने देश में निजी संपत्ति की गोपनीयता का कानून है जो हरव्यक्ति को अधिक से अधिक मात्रा में समाज से छिपाकर धन संग्रह करने को प्रेरित ही नहीं करता बल्कि बाध्यकरता है। 
यह जानते हुए भी कि हर व्यक्ति प्राकृतिक रूप से लोभ लालच और स्वार्थ की दुष्टप्रवृती का शिकार होता हैजिस पर अंकुश रखना अनिवार्य है इस प्रकार की गोपनीयता का कोई औचित्य नहीं होता और इसे कायमरखकर सच पर आधारित व्यवस्था का निर्माण नहीं किया जा सकता। 
इसलिए यदि हम अनेक प्रकार के षडयंत्रों घोटालों और अनेक प्रकार की जटिल समस्याओं से मुक्ति चाहते हैंतो हमें निजी संपत्ति की गोपनीयता के काले कानून को सबसे पहले समाप्त करना होगा इसलिए की उसकेबिना घोटालों और षडयंत्रों को दूर करना तो असंभव है हम उनकी वास्तविक संख्या को भी नहीं जान पाएंगे। 
कहावत है कि चोर को नहीं चोर की मां को मारा जाना चाहिए ताकि आगे चोर पैदा होने बंद हो जाएं। निजीसंपत्ति की गोपनीयता का कानून वही चोरों की मां है जो सारे चोर पैदा कर रही है और इसे तत्काल समाप्तकिया जाना चाहिए। यही है आर्थिक न्याय- हमें गरीबी नहीं अमीरी रेखा बननी चाहिए। 
ब्लागिंग रिपोटिंग - एस. जेड. मालिक(पत्रकार)