Thursday 26 April 2012

व्यस्त लोगों के लिये ध्यान osho

जानने के लिए अपने श्वास के प्रति सजग हों।

" जब तुम कह रहे हो कि तुम खुश हो और तुम खुश नहीं हो, तो तुम्हारी श्वास अनियमित होगी।श्वास सहज नहीं होगी।यह असंभव है।"

तुम सत्य को झुठला नहीं सकते। बेहतर होगा कि तुम इसका सामना करो, बेहतर होगा कि तुम इसे स्वीकार करो, बेहतर होगा कि तुम इसे जीयो। एक बार तुम सच्चा, प्रामाणिक जीवन जीना शुरु करो-- अपना वास्तविक चेहरा-- तो धीरे-धीरे सभी दुख तिरोहित हो जाएंगे क्योंकि संघर्ष समाप्त हो जाता है और अब तुम विभाजित नहीं रहते। तुम्हारी वाणी लयबद्ध हो जाती है, तुम्हारा पूरा अस्तित्व वाद्य-वृंद बन जाता है। अभी तो जब तुम कुछ कहते हो तो तुम्हारा शरीर कुछ और कहता है; जब तुम्हारी जुबान कुछ और कहती है तो तुम्हारी आंखें साथ-साथ कुछ और कहती चली जाती हैं।

बहुत बार लोग यहां आते हैं और मैं उनसे पूछता हूं, "कैसे हो?" तो वे कहते हैं," हुम तो बहुत खुश हैं।´ मुझे तो विश्वास ही नहीं होता क्योंकि उनके चेहरे इतने बुझे से होते हैं-- न कोई उल्लास, न कोई प्रफुल्लता। उनकी आंखों में न कोई चमक, न कोई रोशनी। और जब वे कहते हैं,"हम खुश हैं" तो ´खुश´ शब्द भी खुश प्रतीत नहीं होता। ऐसा लगता है जैसे वे इसे घसीट रहे हों। उनका लहज़ा, उनकी आवाज़, उनका चेहरा, उनके बैठने या खड़े होने का ढंग-- सब कुछ इसे झुठलाता है, कुछ और ही कहता है। इन लोगों की ओर गौर करना। जब वे कहते हैं कि वे खुश हैं तो गौर करना। उनकी भाव-भंगिमा पढ़ना। क्या वे सच में खुश हैं? और अचानक तुम पाओगे कि उनका एक हिस्सा कुछ और ही कह रहा है।

और फिर धीरे-धीरे खुद को देखो। जब तुम कह रहे हो कि तुम खुश हो और हो नहीं तो आपका श्वास अनियमित होगा। आपका श्वास नियमित नहीं हो सकता। यह असंभव है। क्योंकि सत्य यह था कि तुम खुश नहीं थे। यदि तुमने कहा होता, "मैं अप्रसन्न हूं" तो तुम्हारा श्वास सहज रहता। कोई संघर्ष न होता। पर तुमने कहा,"मैं खुश हूं।" तत्क्षण तुमने कुछ दबाया-- उसे, जो बाहर आ रहा था, तुमने उसे भीतर धकेला। इसी संघर्ष में तुम्हारे श्वास की गति बदल जाती है, यह लयबद्ध नहीं रहता। तुम्हारा चेहरा गरिमापूर्ण नहीं रहता, तुम्हारी आंखें चालाक हो जाती हैं।

पहले दूसरों को देखो क्योंकि दूसरों को देखना अधिक आसान होगा। तुम उनको लेकर अधिक निरपेक्ष रह पाओगे। और जब तुम उनके लक्षण पा लोगे तो उन्हीं लक्षणों को स्वयं पर लागू करना। और देखना-- जब तुम सच बोलते हो तो तुम्हारी आवाज़ में संगीत की मधुरता होती है; जब तुम असत्य बोलते हो तो तुम्हारा स्वर कर्कश-सा होता है। जब तुम सत्य बोलते हो तो तुम संयुक्त, सुगठित होते हो; जब तुम असत्य बोलते हो तो तुम संयुक्त नहीं रहते, संघर्ष उठता है।

इन सूक्षम घटनाओं को देखें क्योंकि वे संयुक्त या असंयुक्त होने का ही परिणाम हैं। जब भी तुम संयुक्त हो और भटके हुए नहीं हो, जब भी तुम एक हो, योग में हो, अचानक तुम देखते हो कि तुम खुश हो। ´ योग ´शब्द का यही अर्थ है। ´योगी´ का यही अर्थ है; वह जो संयुक्त है, योग में है; जिसके सभी हिस्से परस्पर-संबंधित,हैं न कि परस्पर-विरोधी, वे परस्पर-निर्भर हैं न कि परस्पर-संघर्ष में, एक दूसरे से समरस। उसका अस्तित्व मैत्रीपूर्ण हो जाता है। वह पूर्ण होता है।

कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी विशेष घड़ी में तुम एक हो जाते हो। सागर को देखो, इसका अत्यंत शोरगुल-- और तुम अपना विभाजन, अपना बंटवारा भूल जाते हो; तुम विश्रांत हो जाते हो। या हिमालय पर जाते हुए पर्वत पर ताज़ा बर्फ को देख कर अचानक एक ठंडक-सी तुम्हें घेर लेती है और तुम्हें झूठा होने की ज़रूरत नहीं रहती क्योंकि वहां झूठा होने के लिए कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है। तुम संयुक्त हो जाते हो। या मधुर संगीत को सुनते हुए, तुम संयुक्त हो जाते हो।

जब भी, कैसी भी स्थिति में, तुम एक होते हो, एक तरह की शांति, प्रफुल्लता, आनंद तुम्हारे भीतर उठता है, तुम्हें घेर लेता है। तुम भर जाते हो।

इन घड़ियों की प्रतीक्षा करने की कोई ज़रूरत नहीं है-- ये घड़ियां आपका वास्त्विक जीवन बन सकती हैं। ये असाधारण पल साधारण पल बन सकते हैं-- ज़ेन का पूरा प्रयास यही है। तुम बहुत साधारण जीवन में भी असाधारण जीवन जी सकते हो: लकड़ी काटते हुए, कुएं से पानी लाते हुए, तुम पूरी तरह विश्रांत रह सकते हो। फर्श साफ करते हुए, भोजन बनाते हुए, कपड़े धोते हुए तुम पूर्णतया विश्रांत रह सकते हो-- क्योंकि सारा प्रश्न तुम्हारे कार्य को पूर्णतया, हंसते- खेलते, प्रफुल्लता से करने का है।

ओशो, डैंग डैंग डोको डैंग: ज़ेन पर प्रवचन

Sunday 22 April 2012

विडंबना

विडंबना

लोग मानते हैं कि
भगवान की मर्जी बगैर
एक पत्ता भी नही हिलता
पर मैं नही मानता
रोज़ बहुत कुछ
ऐसा होता है
जिसे भगवान तो क्या
भला आदमी भी पसंद नहीं करता ।
चोर उचक्के अमीर बन रहे हैं
अच्छे भले फटेहाल हो रहे हैं
काली करतूत वाले सफेदपोश बनकर
सत्ता से मौज उड़ा रहे हैं ।
बच्चे अनाथ हो रहे हैं
औरतों की मांगे सुनी हो रही हैं
बलात्कार, अपहरण , हत्या, तो सरेआम है
कुव्यवस्था की हद हो गई है ।
फिर भी लोग कह रहे हैं
भगवान की इच्छा के बिना
कोई कुछ भी नहीं कर सकता
है कोई जो कह सके मेरे अलावा ?
या तो इस कथन में दम नहीं
या फिर कोई भगवान नहीं

Thursday 19 April 2012

बिहार की चौपट शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान

बिहार की चौपट शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान -२६ मार्च २०१२ से २५ अप्रैल २०१२

by Raghwendra Singh Kushwaha on Tuesday, February 28, 2012 at 7:45am ·
शैक्षणिक व्यवस्था से ही किसी सरकार के असली नीयत का पता चलता है .बिहार की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था चौपट हो चुकी है सरकारी स्कूलों व् कालेजों में पढ़ाई नहीं होने के कारण कुकुरमुत्ता की तरह निजी स्कूल,कॉलेज,कोचिंग और ट्युशन सेंटर बढ़ता जा रहा है.इन संस्थानों की मनमानी की वजह से अभिभावकों एवं छात्रों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना परता है.सरकार
के किसी कायदे कानून को नहीं मानते है उलटे सरकार ही इनके आगे पुरी तरह झुक गई है.
प्राथमिक,मध्य,एवं उच्च विद्यालयों में योग्य शिक्षकों का घोर अभाव है. शिक्षकों के वेतन विसंगतियों की वजह से भी शिक्षा पर बुरा असर परा है .शिक्षा परियोजना से कई तरह की लूट की योजनाओं का निर्माण होता है .मध्याह्न भोजन ,पोशाक और साईकिल योजना में भारी लूट -पाट है .
कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी की वजह से कई विभाग बंद पड़े है .राज्य में मेडिकल, इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षण संस्थान न के बराबर है .इसी वजह से मेधावी छात्रों का दूसरे राज्यों में पलायन होता है और निजी कोचिंग और ट्यूशन का बाजार गरम है .मनमानी फीस से लोगों का कचूमर निकल रहा है .
सरकारी शिक्षण संस्थानों का स्तर इतना गिर गया है कि अब यहाँ से कोई चपरासी भी नहीं बन सकता है .समान शिक्षा आयोग को सिफारिशें धुल चाट रही है .२८ वर्षों से विश्वविद्यालयों में छात्र संघों के चुनाव नहीं होने से राज्य में राजनीतिक कौशल वाले नेतृत्व का निर्माण नहीं हो रहा है .स्कूल व कॉलेज के बगल में और हर जगह शराब की खुली बिक्री से युवा पीढ़ी बड़ी तेजी से बर्बादी के कगार पर है .इन सब चीजों कि वजह से बिहार में अराजकता का माहौल बन गया है और राज्य का भविष्य अंधकारमय हो गया है.
तो आइए इन सब चीजों से मुक्ति और अपनी इच्छा और आकांक्षा के अनुरुप गुणवत्ता पूर्ण शैक्षणिक व्यवस्था व गौरवशाली बिहार के निर्माण के लिए  छात्र लोजपा द्वारा चलाये जा रहे हस्ताक्षर अभियान  कार्यक्रम में भारी संख्या में भाग लें...

तेरा भी इतिहास बनेगा

  तेरा भी इतिहास बनेगा           
तेरी ख़ामोशी ही 
तेरी  बदहाली का कारण है 
तेरे  हुंकार में ही 
सारी  मुसीबतों का निवारण है .

तू इंतजार मत कर 
किसी फ़रिश्ते का 
न वो आया है न आएगा
तेरी  बगावत ही 
नया इन्कलाब लाएगा .

हर कोई अपनी परेशानी की 
लड़ाई से ही महान हुआ है
सीता हरण के बाद ही 
राम ने रावण को मारा 
माता-पिता के प्रतिशोध में 
कृष्ण ने कंस का वध किया 
ट्रेन से धक्का खाकर 
गाँधी ने अंग्रेजो को भगाया.

तू भी शुरू कर अपनी लड़ाई
तेरा भी इतिहास बनेगा 
संघर्ष की बुनियाद पर 
एक नया समाज बनेगा ...