जगदेव बाबू आज भी प्रासंगिक है
सेवा भाव से सत्ता मिलती तो है
वो जनकल्याणकारी होती है किन्तु स्वार्थवश सत्ता हासिल की जाति है तो भ्रस्टाचार को
प्रोत्साहन मिलता है. आजकल देश और खास कर बिहार की राजनीति में स्वार्थ हावी होती
जा रही है और सेवा भाव गायब हो चुकी है. इन दिनों जिस तरह के सिद्धांतविहीन,
सत्तालोलुप और अवसरवादी राजनीतिक गठबंधन का दौर चल रहा है उससे लोकतान्त्रिक
मूल्यों और जनता की आकांक्षाओं की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है. कल तक जो नेता एक
दुसरे को गालियाँ देते थक नहीं रहे थे आज
वे आपस में गले मिलकर भोली भाली जनता की आखो में धुल झोंक रहे हैं.
जन भावनाओं का माखौल उड़ाते आज के
राजनितिक माहौल में बिहार लेनिन अमर शहीद जगदेव प्रसाद की बड़ी सिद्दत के साथ याद
आती है. काश ; आज जगदेव बाबू जिन्दा होते तो क्या करते ?
किसी महान विचारकों के
सिद्धान्तों की प्रासंगिकता वर्तमान समय के संदर्भ की कसौटी पर ही आंकी जाती
है.जगदेव बाबू आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितना वे अपने संघर्ष काल में थे. जिस
गोरे हाथों और मलाईदार तबकों की वे बात करते थे उसके दायरों में आज दुसरे तरीके से
वृद्धि हुई है. हां; यह जरूरी है की अब इस बात पर गौर किया जाए कि सामाजिक न्याय
आन्दोलन की वजह से जिन लोगों को फायदा हुआ उनका बर्ताव आज ठीक उसी तरह का हो गया
है जिनके खिलाफ यह आंदोलन था. इससे साफ़ जाहिर है की सत्ता और संपत्ति पाकर अधिकतर
लोग विकृत हो ही जाते है. ऐसे लोगों की एक अलग सोसाइटी हो जाती है और वहा जातीय
आधार पर वर्गीकरण कम, हैसियत के आधार पर ज्यादा होता है. ऐसे में शोषित की हालत
लगभग जस की तस रह जाती है चाहे वे किसी समाज से हो. यह भी बिलकुल सच है की इस
व्यवस्था में जन्म,शोषण और जुल्म के शिकार लोगो पर जातीय भावनाओं का असर ज्यादा
होता है वनिस्पत व्यवस्थागत दोष के. इसी
ग़लतफहमी में किसी आन्दोलन को तार्किक अंजाम तक ले जाने में काफी परेशानी होती है.
जगदेव बाबू का स्पष्ट मानना था कि सत्ता और संपति से वंचित सभी समाज के लोगो को एक
मंच पर आकर शोषितों के जमात को गोलबंद करके बड़ा और निर्णायक आंदोलन करना चाहिए.
यह तल्ख़ हकीकत है कि जिस तरह
से मेहतर समाज के कलक्टर को अपनी बिरादरी के पखाना साफ करनेवालों से कोई मतलब नहीं
रह जाता हैं ठीक उसी तरह से एक ब्राह्मण वर्ग के उच्च अधिकारी को फटेहाल पुरोहिती
करनेवालों से कोई सरोकार नहीं रहता है. हैसियत के आधार पर वर्गीकरण के कारण ही ब्राह्मण
कलक्टर की बेटी यदि डोम एस.पी. से शादी कर ले तो कोई बात नहीं होती किन्तु वही यदि
गरीब ब्राह्मण की बेटी से गरीब ग्वाला के लड़का की आँख भी लड गई तो सामाजिक तांडव
मच जाता है. इससे यह भी स्पष्ट होता है की हैसियत बढ़ने से सोच के स्तर में भी
गिरावट आती है
आधुनिक संदर्भ में यह सोचना
बहुत आवश्यक हो गया है की सभी समाज के शोषित और वंचितों का दर्द एक है. घृणित
जातीय राजनीति की वजह से अलग अलग टुकडो में विभक्त समाज तो विषाक्त वातावरण में
तनावपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर है किन्तु इसी आधार पर राजनीति करने वाले
जनप्रतिनिधि, मंत्री व नौकरी पाने वाले अफसर सत्ता और शक्ति का नाजायज दोहन कर
अकूत संपति का मालिक बन मौज उड़ाते हैं.
इसी तरह के सामाजिक शोषण के खिलाफ एक बुलंद आवाज थे जगदेव बाबु.
आज सत्तालोलुप
नेताओं एवं पदलोलुप अधिकारियों की जमात में धनलोलुप व्यावसायियों के शामिल होने से
समाज का ताना बाना पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. इन तीनो के गठबंधन की वजह से
पारिवारिक राजनीति व भ्रष्ट प्रशासन आजादी के साल बाद भी उम्मीद के मुताबिक संपूर्ण देश
प्रगति नहीं कर सका है. स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी हमने वैसे कानूनों को
लागु कर रखा है जिन्हें अंगरेजों ने अपने शासन करने के उद्देश्य से बनाया था संविधान निर्माताओं ने हमें पूरी खुली छुट दी
है की हमारी संसद लोक कल्याणकारी कानून एवं योजनाओं को बना सके. किन्तु वास्तव में
हमारे सांसद फालतू के बकवास में अपना समय और देश का पैसा बर्बाद करते रहते है.
सत्ता और विपक्ष दोनों के ही पास ठोस लक्ष्य एवं रणनीति के आभाव में आम जनता का
कायाकल्प नहीं हो रहा है
नेताओं व अफसरों ने तो कई अच्छी
नीतिया बनाई लेकिन नीयत में खोट रहने कारण उनको अमली जामा नहीं पहनाया जा सका. सारी योजनाये गरीबों के नाम पर बनाई जाती है
लेकिन उसका लाभ हमेशा भ्रष्टाचारी लुटते है देश में आज हर स्तर पर भयंकर असमानता
है जो पहले कभी नहीं थी इसी देश में कुछ
ऐसे भी लोग है जिनका घर दुनिया के सबसे आलिशान घरो में शुमार है वहीं दूसरी तरफ
इसी देश में बहुत सारे परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी फूटपाथ पर जिंदगी बसर करने को मजबूर
है यही हाल भोजन शिक्षा
स्वास्थ्य,रोजगार,पेंसन पोशाक,यातायात आदि कई क्षेत्रो में है. इस सामाजिक,आर्थिक
,राजनितिक,और सांस्कृतिक असंतुलन की जड़ हम सब लोग ही है.जगदेव बाबू हर तरह की
असमानता के खिलाफ सशक्त आवाज थे.
इन तमाम विसंगतियों के खिलाफ एक
निर्णायक विद्रोह करके ही जगदेव बाबू को सच्ची
श्रद्धान्जलि दी जा सकती है.
और अंत में उनके पुरे व्यक्तित्व
के संदर्भ में एक शेर अर्ज है :-
बहुत लोग हैं जो वक्त के साँचें में ढल गएँ,
कुछ लोग है जो वक्त के
सांचें बदल दियें.
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- राघवेन्द्र सिंह कुशवाहा
निदेशक
नेगवीरा युनिवर्सल एडुकेशन,पटना