Tuesday 17 October 2017

मौत के क्षण

मौत के क्षण

एक सूफी कथा है। एक लकड़हारा सत्तर साल का हो गया है, लकड़ियां ढोते—ढोते जिंदगी बीत गयी, कई बार सोचा कि मर क्यों न जाऊं! कई बार परमात्मा से प्रार्थना की कि हे प्रभु, मेरी मौत क्यों नहीं भेज देता, सार क्या है इस जीवन में! रोज लकड़ी कांटना, रोज लकड़ी बेचना, थक गया हूं! किसी तरह रोजी—रोटी जुटा पाता हूं। फिर भी पूरा पेट नहीं भरता। एक जून मिल जाए तो बहुत। कभी—कभी दोनों जून भी उपवास हो जाता है। कभी वर्षा ज्यादा दिन हो जाती है, लकड़ी नहीं कांटने जा पाता। फिर का भी हो गया हूं कभी बीमार हो जाता हूं, और लकड़ी कांटने से मिलता कितना है! एक दिन लौटता था थका—मादा, खांसता—खंखारता, अपने गट्ठर को लिये।
और बीच में एकदम ऐसा उसे लगा कि अब बिलकुल व्यर्थ है, मेरा जीवन यह अब मैं क्यों ढो रहा हूं! उसने गट्ठर नीचे पटक दिया, आकाश की तरफ हाथ जोड़कर कहा कि मृत्यु, तू सब को आती है और मुझे नहीं आती! हे यमदूत, तुम मुझे क्या भूल ही गये हो, उठा लो अब! संयोग की बात, ऐसा अक्सर तो होता नहीं, उस दिन हो गया, यमदूत पास से ही गुजरते थे—किसी को लेने जा रहे होंगे—सोचा कि का बड़े हृदय से कातर होकर पुकार रहा है, तो यमदूत आ गये। उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोले क्या भाई, क्या काम है? के ने देखा, मौत सामने खड़ी है, प्राण कंप गये! कई दफे जिंदगी में बुलायी थी मौत—बुलाने का एक मजा है, जब तक आए न।
अब मौत सामने खड़ी थी तो प्राण कैप गये, भूल ही गया मरने इत्यादि की बातें। बोला, कुछ नहीं, और कुछ नहीं, गट्ठर मेरा नीचे गिर गया है। यहां कोई उठाने वाला न दिखा इसलिए आपको बुलाया, जरा उठा दें और नमस्कार, कोई आने की जरूरत नहीं है! और ऐसे तो हम जिंदगीभर कहते रहे, मुझे मरना नहीं है। यह सिर्फ गट्ठर मेरा उठाकर मेरे सिर पर रख दें। जिस गट्ठर से परेशान था, उसी को यमदूत से उठवाकर सिर पर रख लिया। उस दिन उस के की पुलक देखते जब वह घर की तरफ आया! जवान हो गया था फिर से, बड़ा प्रसन्न था। बड़ा प्रसन्न था कि बच गये मौत से। मौत के क्षण में जीवेषणा प्रगाढ़ हो जाती है।  -ओशो

Sunday 14 May 2017

खुद पर विश्वास

खुद पर विस्वास करने वाला हमेशा सफल होता है...

बुलाकी एक बहुत मेहनती किसान था। कड़कतीधूप में उसने और उसके परिवार के अन्य सदस्यों ने रात दिन खेतों में काम कियाऔर परिणामस्वरूप बहुत अच्छी फ़सल हुई। अपने हरे भरे खेतों को देख कर उसकी छाती खुशी से फूल रहीथी क्योंकि फसल काटने का समय आ गया था। इसी बीच उसके खेत में एकचिड़िया ने एकघौंसला बना लिया था। उसके नन्हें मुन्ने चूज़े अभी बहुत छोटे थे।

एक दिन बुलाकी अपने बेटे मुरारी के साथखेत परआया और बोला, “बेटा ऐसा करो कि अपने सभी रिश्तेदारों को निमन्त्रण दोकि वो अगले शनिवार को आकर फ़सल काटने में हमारी सहायता करें।” येसुनकर चिड़ियाके बच्चे बहुत घबराए और माँ से कहने लगे कि हमारा क्या होगा। अभी तो हमारेपर भीपूरी तरह से उड़ने लायक नहीं हुए हैं। चिड़िया ने कहा, तुम चिन्ता मत करो. अगले शनिवार को जबबाप बेटे खेत पर पहुचे तो वहाँ कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुँचा था। दोनोंको बहुत निराशा हुई बुलाकी ने मुरारी से कहा कि लगता है हमारेरिश्तेदार हमारेसे ईर्ष्या करते हैं, इसीलिए नहीं आए।

अब तुम सब मित्रों को ऐसा ही निमन्त्रणअगले हफ़्तेके लिए दे दो। चिड़िया और उसके बच्चों की वही कहानी फिर दोहराई गई और चिड़ियाने वही जवाब दिया। अगले हफ़्ते भी जब दोनों बाप बेटे खेत पर पहुचे तोकोई भी मित्र सहायता करने नहीं आया तो बुलाकी ने मुरारी से कहाकि बेटा देखा तुम ने, जो इन्सान दूसरों का सहारा लेकर जीना चहता है उसकायही हाल होता है और उसे सदा निराशा ही मिलती है।

अब तुम बाज़ार जाओ और फसल काटने का सारा सामान ले आओ,कलसे इस खेत को हम दोनों मिल कर काटेंगे। चिड़िया ने जब यह सुना तो बच्चों सेकहने लगीकि चलो, अब जाने का समय आ गया है. जब इन्सान अपने बाहूबल पर अपना काम स्वयं करनेकी प्रतिज्ञा कर लेता है तो फिर उसे न किसी के सहारे की ज़रूरत पड़ती है और नही उसे कोईरोक सकता है। इसी को कहते हैं बच्चो कि, “अपना हाथजगन्नाथ।” इससे पहले कि बाप बेटे फसल काटने आएँ, चिड़िया अपने बच्चों को लेकर एकसुरक्षित स्थान पर ले गई