Tuesday 14 February 2012

ज़माना बदलता नहीं अपने आप

ज़माना बदलता नहीं अपने आप 
          -राघवेन्द्र सिंह कुशवाहा

 कैसा लगता है आपको 
जब किसी के आलीशान मकान में 
हवाई जहाज उतरता हो 
और किसी का पूरा परिवार 
ठिठुरता हुआ सड़क पर जिंदगी गुजरता हो ...

 कैसा लगता है आपको
जब किसी की छोटी-बड़ी  पार्टी में 
सैकड़ो टोकड़ी भोजन फेंका जाता हो 
और उसी पार्टी के बाहर भूख से तडपते बच्चे को 
रोटी के एक टुकड़े के लिए थप्पर लगती हो...

कैसा लगता है आपको 
जब किसी की मामूली इलाज पर 
महंगे अस्पताल में लाखों रु.खर्च होता हो
और कोई गंभीर बीमारी में भी 
दवा के बगैर तड़प तड़प मरता हो 

कैसा लगता है आपको
जब कोई बच्चा हर रोज नया कपड़ा
पहन पहन कर फेंकता हो
और कोई बच्चा नंगे बदन
मुट्ठी बांधे दाँत किटकिटता हो

कैसा लगता है आपको
जब किसी युवक के हाथ में
महंगा मोबाइल और आई पॉड हो
और किसी के हाथ में
रद्दी चुनने की टोकड़ी

कैसा लगता है आपको
जब कोई लड़की हर रोज
दोस्त बदले तो शान हो
और कोई लड़की सिर्फ मुस्करा दे तो
उसकी जगह श्मशान हो

ऐसे हालात आप अक्सर
सुनते,देखते और भोगते हैं
फिर भी इनके खिलाफ
आप कुछ भी नहीं सोचते हैं

ज़रा सोचिये और बदलिए अपने आप को
वर्ना, ज़माना बदलता नहीं अपने आप

9 comments:

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  2. aapke drishtikon ka vistar hona aavashyak hai...

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  3. yes Raghwendra jee... Kavita hoti hai anubhuti ki chij .....

    Apne Ithni gambhir baat ko ithana saral kaha .....Thanks.

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  4. कविता रचना के लिए धन्यवाद।
    लेकिन रद्दी चुनने वाला बच्चा स्कुल क्यों नहीं जा रहा। वहाँ जाता तो पढ़ाई के साथ भोजन और कपड़ा भी मिलता? इस प्रश्न के ईमानदार उत्तर पर भी गौर करना चाहिए।

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  5. कविता रचना के लिए धन्यवाद।
    लेकिन रद्दी चुनने वाला बच्चा स्कुल क्यों नहीं जा रहा। वहाँ जाता तो पढ़ाई के साथ भोजन और कपड़ा भी मिलता? इस प्रश्न के ईमानदार उत्तर पर भी गौर करना चाहिए।

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