Monday 11 April 2011

"सपने में कबीर"




"सपने में कबीर" - Premkumar Mani
सपने में केवल प्रेमी -प्रेमिकाएं ही नहीं आते, बाज दफा महापुरुष भी आ जाते हैं .एक बार कबीर मेरे सपने में आये . धवल धज थी उनकी - सुफेद बाल-दाढ़ी और सुफेद ही कपडे . रंग था गेंहुआ --सांवलेपन की ओर झुका हुआ . सब मिला कर चित्ताकर्षक व्यक्तित्व - दिव्य का दर्ज़ा देने लायक .
संयोग ही था कि जब वह आये ,मैं उनके पदों को ही पढ़ -गुनगुना रहा था . जाड़ों की सुबह थी और मैं धूप में कुर्सी पर किताब लिए बैठा था . तभी कबीर आये . उन्हें परिचय देना नहीं पड़ा . मैं पहचान गया . साहेब बंदगी कर उन्हें साथ वाली कुर्सी पर बैठाया .वह विहँस रहे थे . मानो कज्जल तालाब में खूब बड़ा -सा कँवल अभी -अभी खिला हो . उन्होंने अपनी चदरिया ठीक की , गो कि वह पहले से ही ठीक थी .
मैं मुग्ध था , अभिभूत -सा . मेरे भीतर एक अनहद राग हिलोरें ले रहा था और दिल के दसों द्वार खुले थे . बात चदरिया से ही शुरू हुई . मैंने उनसे याचना की कि एक ऐसी ही चादर मेरे लिए भी बुन दें . वह मुस्कुराए ,फिर धीरे -से कहा - सबको अपनी चदरिया खुद ही बुननी पड़ती है . जो दूसरों की बुनी चादर ओढ़ते हैं ,उनसे अपुन की नहीं बनती . सबको अपनी कमाई की रोटी खानी चाहिए ,अपनी बुनी चादर ही ओढ़नी चाहिए . हमारे अमर देस में ऐसा ही होता है .
मैं चादर से कूदकर अमर देस पर आ गया . फिर याचना की - कबीर , मुझे अपने अमर देस का नागरिक बना लीजिए न ! फिर कबीर की मुस्कान . कुछ समय तक मुस्कुराते ही रहे . लेकिन जब बोले तब वाणी में थोड़ी -सी तल्खी थी ,मानो वह मेरे भीतर बैठे पांडे को झिड़क रहे हों - यह याचना का कुसंस्कार तज सको तो तजो साधो . सब कुछ मांगने पर ही तुम क्यों तुले रहते हो ? यह हाय -हाय का भाव तुम्हे कहीं का नहीं छोड़ेगा . अमर देस की नागरिकता मांगी नहीं जाती ,अर्जित की जाती है .जिस दिन अपनी कमाई रोटी खाने लगे और अपनी बुनी चदरिया ओढ़ने लगे ,अमर देस के वासी बन जाओगे . कहीं दरखास्त देने की जरुरत नहीं . दूसरों की कमाई खाने वाले अमर देस के नहीं ,रामराज के वासी होते हैं .
मैं कबीर से चाय के लिए पूछने वाला था कि देखा चदरिया हरकत में आई .कबीर का चेहरा पहले एक शिशु में बदला ,फिर एक फूल में . अंतत : वह भी गुम . बस चदरिया फड़फड़ाती रही .धीरे -धीरे वह ऊपर उठी और उड़ने लगी .मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की ; लेकिन इस कोशिश में मैं खुद सतह से उठ गया और उड़ने लगा .
नीद टूटी ,तब मेरे पास कुछ नहीं था ,सिवा एक भीनी वास के ! फूल उड़ गया था ,वास रह गई थी और मैं उसका हिस्सा हुआ जा रहा था .

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